Wednesday 10 June 2020

BIHARI KE DOHE QUES ANS CLASS 10

बिहारी के दोहे

1. छाया भी कब छाया ढूँढने लगती है ?
उ. भीषण गर्मी में धूप से बचने के लिए छाया भी छाया ढूँढने लगती है |

2. बिहारी की नायिका यह क्यों कहती है 'कहिहै सबु तेरौ हियौ, मेरे हिय की बात' ?
उ. बिहारी की नायिका जब अपने नायक को पत्र लिखने बैठती है तो उसे अपने गहन प्रेम को अभिव्यक्त करने के लिए शब्द नहीं मिलते और किसी और व्यक्ति के हाथों संदेशा भिजवाने में उसे लज्जा आती है | उसके गहरे प्रेम का वर्णन करने के लिए शब्द कम पड़ जाते हैं इसलिए वह कहती है 'कहिहै सबु तेरौ हियौ, मेरे हिय की बात' अर्थात हे प्रियतम तेरे हृदय में मेरे प्रति जो भाव हैं, वही भाव मेरे हृदय में भी तेरे प्रति हैं | तेरा मन मेरे मन की बात कहता है | इस प्रकार नायिका बहुत कम शब्दों में अपने हृदय के पूरे भाव पत्र में लिख देती है |

3. सच्चे मन में राम बसते हैं, स्पष्ट कीजिये |
उ. बिहारी लाल जी कहते हैं कि माला जपने, तिलक लगाने, घंटी बजाने, शंख बजाने, व्रत उपवास करने से कभी ईश्वर की प्राप्ति नहीं होती | यदि मन दसों दिशाओं में भटकता रहे तो ऐसी भक्ति का  नहीं है | जिस मनुष्य के ह्रदय में पवित्रता, सच्चाई तथा प्रेम होता है वास्तव में ऐसे ही ह्रदय में ईश्वर बसते हैं |

4. गोपियाँ श्रीकृष्ण की बाँसुरी क्यों छिपा देती हैं ?
उ. गोपियाँ श्रीकृष्ण से अत्यंत प्रेम करती हैं | वे अधिक से अधिक समय तक उनका संसर्ग अर्थात साथ चाहती हैं | शाम होते ही जब श्रीकृष्ण घर लौटने लगते हैं तो गोपियाँ व्याकुल हो उठती हैं | वे सब थोड़ी देर और उन्हें अपने पास रोक लेना चाहती हैं | श्रीकृष्ण को अपनी बाँसुरी से बहुत प्रेम है | वे अपनी बाँसुरी के बिना एक पल भी नहीं रहते | गोपियाँ जानती हैं कि श्रीकृष्ण अपनी बाँसुरी लिए बिना घर नहीं जाएँगे | इसलिए वे उनकी बाँसुरी छिपा देती हैं ताकि इसी बहाने वे उन्हें थोड़ी देर और अपने पास रोक सकें तथा उनके साथ समय व्यतीत कर सकें | श्रीकृष्ण अपनी बाँसुरी माँगते रहते हैं तथा गोपियाँ बार - बार लौटाने से मना कर देती हैं | इसी बहाने गोपियाँ श्रीकृष्ण का संसर्ग पा कर तृप्त हो जाती हैं |

5. बिहारी कवि ने सभी की उपस्थिति में   भी कैसे बात की जा सकती है, इसका वर्णन किस प्रकार किया है ?
उ. नायक तथा नायिका सभी की उपस्थिति में बातचीत नहीं कर सकते इसलिए बिहारी के नायक व नायिका सभी नाते रिश्तेदारों से भरे हुए भवन में संकेतों द्वारा बातचीत करते हैं | नायक संकेतों द्वारा नायिका को मिलने के लिए कहता है, नायिका संकोचवश सिर हिलाकर मना कर देती है, नायक उसकी इस अदा पर रीझ जाता है, अत्यंत प्रसन्न हो जाता है, उसे इस प्रकार प्रसन्न होते देख नायिका खीझ जाती है अर्थात चिढ़ जाती है, इस प्रकार दोनों के नेत्र मिलते हैं और नायक का चेहरा ख़ुशी से खिल उठता है और नायिका लज्जा जाती है अर्थात शरमा जाती है |  प्रकार नायक तथा नायिका भरे हुए भवन में ही संकेतों  में प्रेमपूर्वक वार्तालाप (बातचीत) कर लेते हैं |

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